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औषधीय खेती

मिल गई किसानों की समृद्धि की संजीवनी बूटी, दवाई के साथ कमाई, भारी सब्सिडी दे रही है सरकार

मिल गई किसानों की समृद्धि की संजीवनी बूटी, दवाई के साथ कमाई, भारी सब्सिडी दे रही है सरकार

भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि प्रधान देश होने के बावजुद भारत के किसानों की आय बेहतर नहीं हो पाती। प्रधानमंत्री भी किसानों की आय को लेकर हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जिसका लाभ किसानों को भी मिल रहा है। केंद्र सरकार किसानों के लिए बहुत सारी योजना चला रही है, ताकि किसान की आय को बढाया जा सके। इसी दिशा में जड़ी बूटी की खेती करने वाले किसानों के लिए सरकार एक खास योजना लेकर आई है। सरकार ऐसे किसानों को 75% की सब्सिडी देगी। पूरी दुनिया आज भारत की आयुर्वेद विज्ञान, जड़ी-बूटियां और आयुष पद्धतियों को अपना रही है। इसका कारण यह है कि देश-विदेश में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। जाहिर है, यह भारत के किसानों के लिए सुनहरा मौका है, क्योंकि भारत की धरती औषधीय पौधे या जड़ी-बूटियों की खेती के लिये सबसे उपयुक्त है। यहां पौराणिक काल से ही जड़ी-बूटियों के भंडार मौजूद रहे हैं।
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किसानों को औषधीय खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकार मिलकर कई योजनाओं पर काम कर रही हैं। इन योजनाओं के तहत किसानों को अलग-अलग जड़ी-बूटियां उगाने के लिये 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। भारत में औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का उत्पादन बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम; National AYUSH Mission - NAM) एक योजना चला रही है। इस योजना के तहत 140 जड़ी-बूटियां और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिये किसानों को अलग-अलग हिसाब से सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत आवेदन करने वाले लाभार्थी किसानों को औषधीय पौधों की खेती की लागत पर 30 प्रतिशत से लेकर 50 और 75 फीसदी तक आर्थिक अनुदान दिया जा रहा है। आयुष मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत औषधीय पौधों और जड़ी-बूटी उत्‍पादन के लिये करीब 59,350 से ज्यादा किसानों को आर्थिक सहायता मिल चुकी है।

बड़े काम का ई-चरक ऐप

राष्ट्रीय आयुष मिशन पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही यह किसानों को भी कम लागत में औषधीय खेती करने के लिये प्रोत्साहित करता है ताकि किसानों की आय बढ़ सके। योजना के तहत आर्थिक अनुदान का तो प्रावधान है ही, खेती के साथ-साथ उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में भी सरकार इन किसानों की मदद करती है।


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भारत में ज्यादातर किसान औषधीय पौधों की खेती के लिये दवा कंपनियों के साथ कांट्रेक्ट करते हैं। दरअसल औषधीय पौधों की उपज और इनकी बिक्री के बाजार की जानकारी ना होने के कारण किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग करना पसंद करते हैं। अब किसान चाहें तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिये भी जड़ी-बूटियों की खरीद-बिक्री कर सकते हैं। इसके लिये केंद्र सरकार ने ई-चरक मोबाइल एपलिकेशन भी लॉन्च किया है। इस ऐप का कमाल यह है कि अब किसान सीधे ई-चरक ऐप से आसानी से जड़ी-बूटियों की खरीदारी और बिक्री कर सकते हैं। जाहिर है, भारत की परंपरागत जड़ी-बूटी की खेती कर के किसान प्रधानमंत्री मोदी का वह सपना पूरा कर सकते हैं, जिसमें उन्होंने किसानों की ये दोगुनी करने की बात कही थी।
बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा

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खेती में नवीन तकनीकों को प्रयोग में लाने के अतिरिक्त किशोर राजपूत ने देसी धान की 200 किस्मों को विलुप्त होने से बचाव किया है, जिनको देखने आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों से किसान व कृषि विशेषज्ञों का आना जाना लगा रहता है। भारत में सुगमता से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। खेती में होने वाले व्यय को कम करके बेहतर उत्पादन प्राप्त करने हेतु आज अधिकाँश किसानों द्वारा ये तरीका आजमा रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक युवा किसान के माध्यम से वर्षों पूर्व ही प्राकृतिक खेती आरंभ कर दी थी। साथ ही, गौ आधारित खेती करके जड़ी-बूटियां व औषधीय फसलों की खेती की भी शुरूआत की थी। किशोर राजपूत नामक इस युवा किसान की पूरे भारतवर्ष में सराहनीय चर्चा हो रही है। शून्य बजट वाली इस खेती का ये नुस्खा इतना प्रशिद्ध हो चूका है, कि इसकी जानकारी लेने के लिए दूरस्थित किसानों का भी छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जनपद की नगर पंचायत नवागढ़ में ताँता लगा हुआ है। अब बात करते हैं कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाली फसलों के नुस्खे का पता करने वाले युवा किसान किशोर राजपूत के बारे में।


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किशोर राजपूत को खेती किसानी करना कैसे आया

आमतौर पर अधिकाँश किसान पुत्र अपने पिता से ही खेती-किसानी के गुड़ सीखते हैं। यही बात किशोर राजपूत ने कही है, किशोर पिता को खेतों में अथक परिश्रम करते देखता था, जो उसके लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत साबित हुआ। युवा का विद्यालय जाते समय रास्ते में पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, हरियाली बहुत आकर्षित करती थी। किशोर ने कम आयु से ही खेतों की पगडंडियों पर मौजूद जड़ी-बूटियों के बारे में रुचि लेना और जानना शुरू कर दिया। बढ़ती आयु के दौरान किशोर किसी कारण से 12वीं की पढ़ाई छोड़ पगडंडियों की औषधियों के आधार पर वर्ष २००६ से २०१७ एक आयुर्वेदित दवा खाना चलाया। आज किशोर राजपूत ने औषधीय फसलों की खेती कर भारत के साथ साथ विदेशों में भी परचम लहराया है, इतना ही नहीं किशोर समाज कल्याण हेतु लोगों को मुफ्त में औषधीय पौधे भी देते हैं।

किशोर ने कितने रूपये की लागत से खेती शुरू की

वर्ष २०११ में स्वयं आधार एकड़ भूमि पर किशोर नामक किसान ने प्राकृतिक विधि के जरिये औषधीय खेती आरंभ की। इस समय किशोर राजपूत ने अपने खेत की मेड़ों पर कौच बीज, सर्पगंधा व सतावर को रोपा, जिसकी वजह से रिक्त पड़े स्थानों से भी थोड़ा बहुत धन अर्जित हो सके। उसके उपरांत बरसाती दिनों में स्वतः ही उत्पादित होने वाली वनस्पतियों को भी प्राप्त किया, साथ ही, सरपुंख, नागर, मोथा, आंवला एवं भृंगराज की ओर भी रुख बढ़ाया। देखते ही देखते ये औषधीय खेती भी अंतरवर्तीय खेती में तब्दील हो गई व खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा, अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच व ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना इत्यादि की खेती करने लगे। प्रारंभिक समय में खेती के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, आरंभ में बेहतर उत्पादन न हो पाना, लेकिन समय के साथ उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
इस हर्बल फसल की खेती करके कमाएं भारी मुनाफा, महज तीन महीने में रकम होगी 3 गुना

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इन दिनों दुनिया में हर्बल प्रोडक्ट्स की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। जिसको देखते हुए दुनिया भर के किसान हर्बल खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि मांग बढ़ने से हर्बल प्रोडक्ट्स ऊंचे दाम में बेंचे जा रहे हैं जिसका फायदा किसानों को भी हो रहा है। इसके अलावा हर्बल खेती में अन्य खेती के मुकाबले लागत भी बेहद कम लगती है साथ ही इस खेती में किसानों को मेहनत भी कम करनी होती है। इन कारणों से किसान भाई लगातार हर्बल खेती की तरफ प्रेरित हो रहे हैं। अगर हम हर्बल उत्पादों की बात करें तो ये उत्पाद अपने औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं। इन उत्पादों का उपयोग ज्यादातर दवाइयां बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में भी इन उत्पादों का बड़े स्तर पर उपयोग किया जाता है। खास कर मेंथा का तेल इस मामले में बहुत प्रसिद्ध है, जिससे न केवल सुगंधित इत्र बल्कि इससे कई तरह की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। यह बेहद कम लागत वाली खेती होती है, जिससे किसान भाई बहुत ही जल्दी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मेंथा की खेती में लागत से 3 गुना ज्यादा तक मुनाफा होता है। चूंकि यह एक औषधीय खेती है इसलिए इसकी खेती करने से खेत की उर्वरा शक्ति भी तेजी से बढ़ती है।

दुनिया में मेंथा के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है भारत

मेंथा का तेल का उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में किया जाता है। मेंथा को भारत में मिंट के नाम से भी जानते हैं। इसका उत्पादन ज्यादातर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किया जाता है। उत्तर प्रदेश में पीलीभीत, सोनभद्र, बदायूं, रामपुर, बाराबंकी और फैजाबाद जिले इसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। जबकि मध्य प्रदेश में इसका उत्पादन छतरपुर, टीकमगढ़ और सागर जिले में किया जाता है। मेंथा का तेल की बिक्री हाथोंहाथ हो जाती है, क्योंकि दवाइयां निर्माता कंपनियां इस तेल को किसानों से सीधे खरीद ले जाती हैं।

एक एकड़ में होता है जबरदस्त उत्पादन

किसानों को मेंथा की खेती के पहले कई बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। जैसे खेत में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इस खेती में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसके साथ ही किसान भाई जिस खेत में मेंथा की खेती करना चाहते हैं उसे पहले अच्छे से जुताई करके तैयार कर लें। इसके बाद फरवरी से अप्रैल माह के बीच मेंथा कि बुवाई कर दें। यदि सही समय पर मेंथा की बुवाई की गई है तो फसल तीन माह में तैयार हो जाएगी। जून माह में इस फसल की कटाई कर लें और कुछ दिनों तक सूखने के लिए इसे खेत पर ही छोड़ दें। धूप में अच्छी तरह से सूखने के बाद फसल को प्लांट पर भेजा जाता है जहां इसका तेल निकाला जाता है। मेंथा की खेती से किसान भाई एक एकड़ जमीन में लगभग 100 लीटर तेल प्राप्त कर सकते हैं। ये भी पढ़े: इस राज्य के किसान अब करेंगे औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती अगर बाजार में मेंथा के तेल के भाव की बात करें तो यह 1,000 से 1,500  रुपये प्रति लीटर तक बिकता है। जबकि इस फसल को एक एकड़ में लगाने पर मात्र 25 हजार रुपये का खर्चा आता है। इस हिसाब से किसान भाई मात्र एक एकड़ में मेंथा की फसल लगाकर सवा लाख रुपये तक की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं
आने वाले दिनों में औषधीय खेती से बदल सकती है किसानों को तकदीर, धन की होगी बरसात

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि आज भी दुनिया के विकासशील देशों में 80 फीसदी लोग अपने इलाज के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटियों पर निर्भर हैं। इन देशों में जड़ी बूटियों के माध्यम से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी पद्धतियों द्वारा इलाज किया जाता है। इसके साथ ही होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में भी पौधों के रसों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है। इसलिए पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि दुनिया भर में औषधीय और सुगंधित पौधों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। इसका एक बहुत बड़ा कारण एलोपैथी दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव भी हैं, जिनके कारण हर्बल औषधियों की मांग तेजी से बढ़ी है। दुनिया के विशेषज्ञों का कहना है की आगामी समय में साल 2050 तक हर्बल दवाइयों का बाजार 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। यह किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। भारत में जड़ी-बूटियों का भंडार है जिससे आगामी समय में भारत का महत्व बढ़ने वाला है और दवाइयों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ती हुई दिखाई देगी। भारत एक जैव विविधिता वाला देश है जहां 960 प्रकार से ज्यादा जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। अगर दुनिया भर में जैव विविधिता वाले क्षेत्रों की गणना करें तो इनकी संख्या 18 है। जिनमें से 2 भारत में पाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के हिसाब से औषधीय वनस्पतियां स्वतः ही उगने लगती हैं यह भारत एक लिए सबसे बड़ी सकारात्मक बात है। ये भी पढ़े: बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी ने अपने दस्तावजों में बताया है कि भारत सरकार अब व्यावसायिक रूप से हर्बल खेती को बढ़ावा दे रही है, ताकि देश के किसान भी इस विकास के मुख्य भागीदार बन सकें। इसके लिए सरकार के द्वारा औषधीय और सुगंधित पौधों के संरक्षण और उनके उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि जड़ी बूटियों को जंगलों से लूटने के बजाय इन्हें खेतों में उगाया जाना चाहिए ताकि जैव विविधिता बरकरार रह सके। जिससे आगामी पीढ़ियों को भी इस प्रकार की जड़ी बूटियां मिल सकें। सरकार अपनी योजनाओं के तहत मेंथा, ईसबगोल, सनाय और पोस्तदाना जैसी हर्बल दवाइयों की खेती को बढ़ावा दे रही है। सरकार के प्रयासों से देश भर में करीब 5 लाख किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं। भारत में इसका कारोबार 3500 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। किसानों की कड़ी मेहनत से भारत दुनिया में मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है, इसके साथ ही भारत इसका सबसे बाद निर्यातक भी है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि देश के किसानों को औषधीय पौधों के उत्पादन के साथ ही उनके अंतिम उत्पाद बनाकर बाजार में बेंचना चाहिए। इससे किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ सकती है। औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए सरकार ने देश में कई क्लस्टरों का चयन किया है जहां सभी प्रकार की सहूलियतें उपलब्ध कारवाई जा रही हैं। देश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों में हर्बल खेती व्यापक पैमाने पर की जा सकती है। खेती के लिए सभी प्रकार की प्राकृतिक संभावनाएं इन राज्यों में मौजूद हैं। फिलहाल इन राज्यों में लेवेंडर, मेहंदी, नींबू घास, अश्वगंधा, सतावर और दूसरी कई जड़ी-बूटियों की खेती व्यापक पैमाने पर की जा रही है। आगामी समय में यदि किसान उन्नत तकनीक से हर्बल खेती करना शुरू करेंगे तो निश्चित ही उनके ऊपर धन की बरसात हो सकती है।
जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल की खेती किसान प्राकृतिक विधि से करके दोगुनी आय कर सकते हैं

जायफल एक नगदी फसल है। प्राकृतिक ढ़ंग से इसकी खेती कर किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। भारत देश में हर तरह की फसलों की खेती की जाती है। इस बदलते खेती के युग में फिलहाल किसान नगदी फसल की खेती की तरफ अधिक रुझान कर रहे हैं। इस नगदी फसल की खेती से मुनाफा अर्जित कर किसान संपन्न हो रहे हैं। आगे इस लेख में हम आपको ऐसी ही एक फसल जायफल की खेती के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं। इसे नकदी फसल के रूप में ही उगाया जाता है। आज कल किसान इसकी खेती प्राकृतिक ढ़ंग से कर काफी मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।

जायफल की खेती हेतु उपयुक्त मृदा

विशेषज्ञों के मुताबिक, जायफल के लिए बलुई दोमट एवं लाल लैटेराइट मृदा सबसे अच्छी होती है। इसका पीएच मान 5 से 6 के मध्य होना चाहिए। इसके बीज की बुवाई के पहले खेत की गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। ये भी पढ़े:
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जायफल की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु

जायफल एक सदाबहार पौधा होता है। इसकी बिजाई करने के लिए 22 से 25 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक गर्मी वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छे से नहीं हो पाती है। जायफल के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाते हैं।

खेत की तैयारी किस प्रकार करें

बीज की बुवाई के उपरांत खेत की बेहतर ढ़ंग से सिंचाई कर दें। इसके लिए खेत में गड्डे भी तैयार किए जाते हैं। खेत की मिट्टी पलटने के लिए हल से गहरी जुताई करें। 4 से 6 दिन गुजरने के उपरांत खेत में कल्टीवेटर की सहायता से 3 से 4 बार जुताई करें।

जायफल की फसल में आर्गेनिक खाद का उपयोग

जायफल के पौधों की बुवाई के पश्चात खेतों में लगातार उचित अंतराल पर खाद देते रहना चाहिए। खेत में गोमूत्र एवं बाविस्टीन के मिश्रण को डाल देना चाहिए। जायफल की पौध तैयार करने के लिए आर्गेनिक खाद, गोबर, सड़ी गली सब्जियों का उपयोग करना चाहिए। ये भी पढ़े: बीजीय मसाले की खेती में मुनाफा ही मुनाफा

जायफल से कितनी पैदावार होती है

जायफल का उत्पादन 4 से 6 साल बाद चालू हो जाती है। इसका वास्तविक लाभ 15 से 18 वर्ष उपरांत मिलना शुरू होता है। इसके पौधों में फल जून से अगस्त माह के मध्य लगते हैं। यह पकने के पश्चात पीले रंग के हो जाते हैं। इसके उपरांत जायफल के बाहर का आवरण फट कर बाहर निकल जाता है। अब आपको इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
विश्व प्रसिद्ध सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती कहाँ होती है

विश्व प्रसिद्ध सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती कहाँ होती है

राजस्थान के पाली जनपद में सोजत मेहंदी की सबसे अधिक खेती होती है। यहां के छोटे-बड़े कारोबारी मेहंदी का कारोबार कर के अपने परिवार का भरण-पोषण बेहद अच्छे ढ़ंग से कर रहे हैं। यहां की मेहंदी को जीआई टैग भी प्राप्त हो चुका है। जीआई टैग मिलने के उपरांत यहां के कारोबारियों की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं। अपने कारोबार के प्रति इतने इमानदार हैं, कि आज सोजत मेहंदी पूरी दुनिया की सर्वाधिक विश्वसनीय मेहंदी ब्रांड बन चुका है। मेहंदी का नाम कान में पड़ते ही हमारे दिमाग में हाथों पर तरह-तरह की उकेरी गई डिजाईन उभर आती हैं। वहीं, लाल रंग की मेहंदी के लिए सोजत मेंहदी पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। इस मेहंदी के साथ महिलाओं का भरोशा इतना मजबूत है, कि जिसकी कोई हद नहीं है। किसी और मेहंदी को लेकर सभी को एक दुविधा सी रहती है, कि ये हाथ में लगाने के उपरांत चटक रंग छोड़ेगा अथवा नहीं। वहीं, कोई दूसरी मेहंदी इतना लाल रंग छोड़ रही है, तो एक दुविधा ये भी रहती है, कि कहीं इसमें कोई रसायन तो नहीं मिलाया गया है। परंतु, सोजत मेहंदी के साथ ऐसा कुछ नहीं है।

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सोजत मेहंदी की दिन-प्रतिदिन बढ़ती विश्वसनीयता

लोगों के बीच इसकी विश्वसनीयता दिन-प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है। जानकारी हो, कि राजस्थान के पाली जनपद में सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती होती है। यहां के छोटे-बड़े व्यापारी मेहंदी का व्यापार कर के अपने परिवार का भरण-पोषण काफी अच्छे से कर रहे हैं। यहां की मेहंदी को जीआई टैग भी प्राप्त हो चुका है। जीआई टैग मिलने के बाद यहां के कारोबारियों की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं। वहां के कारोबारी अपने कारोबार के प्रति इतने इमानदार हैं, कि आज सोजात मेहंदी संपूर्ण विश्व का सबसे ज्यादा विश्वसनीय मेहंदी ब्रांड बन चुका है।

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मेहंदी को महिला श्रृंगार का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है

प्रत्येक धर्म की महिलाओं के श्रृगांर में मेहंदी का अपना विशेष महत्व है। एक तरह से हम कह सकते हैं, कि मेहंदी के बिना किसी भी धर्म की महिलाओं का श्रृंगार अधूरा ही रहता है। विशेष अवसर पर मेहंदी की महत्वता काफी बढ़ जाती है। विशेषकर मांगलिक अवसर पर अथवा तीज-त्योहार में सावन के महीने में महिलाएं हाथों में मेहंदी लगा कजरी गाती हैं। इन समस्त अवसरों पर महिलाओं की पहली पसंद सोजत मेहंदी ही है। क्योंकि, यह पूरी तरह से रसायन मुक्त होता है, जिसकी वजह से हाथों में जो चटक रंग चढ़ता है। सोजत मेहंदी का अपना रंग होता है, बिल्कुल नेचुरल जिससे किसी भी तरह से त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचता है।

महिलाओं की सोजत मेहंदी के व्यापार में हिस्सेदारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आज हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता बढ़ती ही जा रही है। महिलाओं का विश्वास जितना आज सोजत मेहंदी पर उतना किसी और मेहंदी पर नहीं होता है। आज बहुत सारी महिलाऐं व्यूटी पार्लर चला रहीं हैं अथवा स्वतंत्र रुप से शादी-विवाह में जाकर मेहंदी लगाती हैं। दरअसल, वे सभी सामान्यतः सोजत मेहंदी ही लगाती हैं। एक आंकड़े के अनुसार, मेहंदी के कारोबार में 80 प्रतिशत महिलाओं की हिस्सेदारी है।